रांची। उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में 13 जनवरी से सबसे बड़े धार्मिक संगम महाकुंभ का आयोजन किया जा रहा है, जो 26 फरवरी तक चलेगा। कुंभ भारत का एक सबसे प्राचीन और विशाल धार्मिक आयोजन है, जो हिंदू धर्म की परंपराओं, आध्यात्मिक और संस्कृति का प्रतीक है। इसे दुनिया का सबसे बड़ा धार्मिक मेला भी कहा जाता है।
तो आइए जानते हैं कि कुंभ कब, कहां और कितने वर्षों में लगता है?
जानें क्या है कुंभ का महत्व ?
महाकुंभ मेले में भारत समेत दुनियाभर से करोड़ों लोग शामिल होने पहुंच रहें हैं। घाटों पर भारी भीड़ है और श्रद्धालुओं में खूब उत्साह देखा जा रहा है। दरअसल, ज्योतिषीय गणनाओं और ग्रह-नक्षत्रों की स्थिति के आधार पर कुंभ और महाकुंभ का आयोजन अनंत काल से होता आ रहा है। विष्णु पुराण में इस बात का उल्लेख है कि जब गुरु कुंभ राशि में प्रवेश करता है और सूर्य मेष राशि में होता है, तो हरिद्वार में कुंभ का आयोजन होता है।
इसी प्रकार, जब सूर्य और बृहस्पति सिंह राशि में होते हैं, तो नासिक में कुंभ लगता है। उज्जैन में कुंभ तब लगता है जब बृहस्पति कुंभ राशि में प्रवेश करता है। प्रयागराज में माघ अमावस्या के दिन सूर्य और चंद्रमा मकर राशि में होते हैं और बृहस्पति मेष राशि में होता है।
अर्ध कुंभ कब और कहां लगता है ?
अर्ध कुंभ हर 6 साल में हरिद्वार और प्रयागराज में होता है। यह आयोजन गंगा, यमुना और सरस्वती नदियों के संगम पर होता है, जिसे धार्मिक दृष्टि से अत्यधिक पवित्र माना जाता है। अर्ध कुंभ का महत्व इसलिए अधिक है क्योंकि इसे कुंभ मेले का आधा चक्र माना जाता है। इसमें लाखों श्रद्धालु स्नान करने के लिए आते हैं, क्योंकि यह मान्यता है कि इस दौरान संगम में स्नान करने से पापों का नाश होता है और मोक्ष की प्राप्ति होती है।
इसके आयोजन का समय भी खगोलीय गणनाओं पर आधारित होता है। जब बृहस्पति वृश्चिक राशि में और सूर्य मकर राशि में प्रवेश करता है, तब अर्ध कुंभ का आयोजन होता है।
कुंभ कब और कहां लगता है ?
तो कुंभ मेला हर 4 साल में एक बार लगता है और चार पवित्र स्थानों के बीच बारी-बारी से लगता है। कुंभ मेला हर 12 साल के अंतराल पर एक पवित्र स्थल पर आयोजित होता है। ये चार स्थान प्रयागराज, हरिद्वार, उज्जैन और नासिक हैं।
ये मेला प्रयागराज में गंगा, यमुना और सरस्वती नदियों के संगम पर, हरिद्वार में गंगा नदी के किनारे, उज्जैन में शिप्रा नदी के किनारे और नासिक में गोदावरी नदी के किनारे आयोजित किया जाता है।
पूर्ण कुंभ कब और कहां लगता है ?
पूर्ण कुंभ मेला कुंभ मेले का ही विस्तार है, जो हर 12 साल में प्रयागराज में आयोजित होता है। इसे कुंभ का पूर्ण रूप माना जाता है और इसका महत्व अन्य कुंभ मेलों से अधिक है। पवित्र नदियों गंगा, यमुना और सरस्वती के संगम पर होने वाले इस आयोजन का मुख्य उद्देश्य आत्मा की शुद्धि और मोक्ष प्राप्ति है।
महाकुंभ कब और कहां लगता है ?
महाकुंभ एक दुर्लभ आयोजन है, जो 12 पूर्ण कुंभ के बाद यानी 144 साल बाद आता है और केवल प्रयागराज में ही लगता है। आसान भाषा में समझें तो प्रयागराज में हर 12 साल में पूर्ण कुंभ मेला लगता है। जब 11 पूर्ण कुंभ हो जाते हैं तब 12वें पूर्ण कुंभ को महाकुंभ कहा जाता है, जो 144 साल में एक बार लगता है।
इसके चलते इसे भव्य कुंभ भी कहा जाता है। यानी साल 2025 में लगने वाला महाकुंभ 144 सालों बाद आया है, यही वजह है कि इसे बेहद खास माना जा रहा है।
कुंभ के पौराणिक कथा और मान्यताएं
दरअसल, कुंभ मेले का महत्व पौराणिक कथाओं और धार्मिक परंपराओं से जुड़ा है। कुंभ मेले की उत्पत्ति सनातन धर्म की पौराणिक कथाओं, विशेष रूप से समुद्र मंथन की कथा से है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, दुर्वासा ऋषि के श्राप के कारण जब इंद्र और देवता कमजोर पड़ गए, तो असुरों ने देवलोक पर आक्रमण करके उन्हें परास्त कर दिया था।
असुरों से पराजित होने के बाद सभी देवता भगवान ब्रह्मा जी के पास जाते हैं और उन्हें पूरा किस्सा सुनाते हैं। ब्रह्मा जी सारे देवताओं को लेकर विष्णु जी के पास जाते हैं और मदद मांगते हैं। तब विष्णु जी उन्हें एक सुझाव देते हैं कि हमें समुद्र मंथन करना चाहिए और समुद्र मंथन से अमृत निकलेगा। इस अमृत को पीकर आप अमर हो जाओगे और मृत्यु आपको हरा नहीं पाएगी।
लेकिन समुद्र मंथन का काम देवता अकेले नहीं कर सकते थे इसलिए भगवान विष्णु ने देवताओं को दैत्यों के साथ मिलकर मंथन करके अमृत निकालने को कहा। असुर भी इस मंथन के लिए मान गए क्योंकि उन्हें यह लगा था कि जैसे ही अमृत निकलेगा तो वो अमृत उन असुरों को भी दिया जाएगा।
समुद्र मंथन से विष निकलने के बाद जैसे ही भगवान धन्वंतरि अमृत कुंभ यानी कि अमृत से भरा हुआ कलश बाहर निकला देवता और असुरों के बीच में लड़ाई छिड़ गई। इस दौरान अमृत कलश को लेने के लिए राक्षस दौड़े। लड़ाई के बीच में विष्णु भगवान ने अपना वाहन गरुड़ देव यह अमृत का कलश लेके वहां से उड़ जाने को कहा और जब गरुड़ देव यह कलश लेकर जा रहे थे।
तब अमृत की चार बूंदे चार जगह पर गिरती है हरिद्वार उज्जैन नासिक और प्रयागराज में गिरी जहां पर 12 वर्ष बाद कुंभ मेलों का आयोजन होता है। इसीलिए इन्हीं चार जगहों पर कुंभ मेले का आयोजन होता है। इसके साथ ही ये भी मान्यता है कि देवलोक के 12 दिन, पृथ्वी के 12 साल के बराबर होते हैं। इसलिए हर 12 वर्ष में एक बार इन चारों स्थानों पर कुंभ का आयोजन होता है।
कुंभ मेला केवल एक धार्मिक आयोजन नहीं है, बल्कि यह भारतीय संस्कृति, परंपरा और आध्यात्म का प्रतीक है। हर 12 साल में चार स्थानों पर आयोजित होने वाला यह मेला न केवल श्रद्धालुओं के लिए बल्कि पूरे विश्व के लिए एक महत्वपूर्ण आकर्षण बन चुका है।
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