झारखंड भारत का खनिज केंद्र, अपनी प्राकृतिक संपदा और अद्वितीय सुंदरता के लिए जाना जाता है। लेकिन खनन, वनों की कटाई और शहरीकरण की वजह से यहां का पर्यावरण खतरे में है। ऐसे में सवाल उठता है कि विकास की रफ्तार बनाए रखते हुए प्रकृति को कैसे बचाया जाए? इसका जवाब है – सतत विकास, यानी ऐसा विकास जो पर्यावरण, समाज और अर्थव्यवस्था के बीच संतुलन बनाए रखे।
क्या है सतत विकास?
सतत विकास का मतलब है, आज की जरूरतें पूरी करना, लेकिन इस तरह कि भविष्य की पीढ़ियां भी अपनी जरूरतें पूरी कर सकें। यह सोच न केवल पर्यावरण को बचाती है, बल्कि समाज के हर वर्ग को साथ लेकर चलने पर जोर देती है।
झारखंड को क्यों चाहिए सतत विकास?
खनिज खजाना और खनन का असर
झारखंड को कोयला, लौह अयस्क और बाक्साइट जैसे खनिजों का वरदान मिला है। लेकिन इनका अति-उत्पादन पर्यावरण को भारी नुकसान पहुंचा रहा है। सतत विकास के लिए ज़रूरी है कि खनन नीतियां ऐसी हों, जो पर्यावरण को कम नुकसान पहुंचाएं और लोगों को विस्थापन से बचाएं।
वन और वन्यजीव संकट
झारखंड के जंगल सिर्फ राज्य का फेफड़ा नहीं, बल्कि लाखों वन्यजीवों और आदिवासी समुदायों का घर भी हैं। लेकिन वनों की कटाई और विकास परियोजनाओं की वजह से यहां का पर्यावरण असंतुलित हो रहा है। वृक्षारोपण और वनों का संरक्षण ही समाधान है।
जल संकट
झारखंड में पानी की कमी नहीं है, लेकिन पानी की बर्बादी और प्रदूषण बड़ी समस्या बन रही है। तालाब, नदियों और झरनों को साफ रखना और पानी का सही इस्तेमाल।
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